• हड्डियों और जोडो के स्वास्थ के लिए सहायक विटामिन डी है !
• विटामिन डी एक हार्मोन है जो फास्फोरस, कैल्शियम और हड्डियों के मेटाबॉलिज़्म और न्यूरोमस्क्यूलर कार्यों को नियंत्रित करता है।
• यह मजबूत हड्डियों और मांसपेशियों के लिए आवश्यक है।
• विटामिन डी के बिना हमारा शरीर स्वस्थ हड्डियों के लिए जरूरी कैल्शियम को ठीक ढंग से अवशोशित नहीं कर सकता।
• कैल्शियम का संतुलन और हड्डियों के मेटाबॉलिज़्म के अलावा विटामिन डी के कई अन्य शारीरिक कार्य हैं जैसे कि मांसपेशियों की मजबूती बनाए रखना, इम्यून फंक्शन बढ़ाना, रक्तचाप को नियंत्रित करना आदि।
• इन शारीरिक कार्यों के कारण विटामिन डी मांसपेशियों के दर्द और कमजोरी व कई ऑटोइम्यून बीमारियों के विरूद्ध काम आता है।
• भारत में सभी आयु वर्ग की महिलाओं व पुरूशों में विटामिन डी की कमी बहुत आम है।
• दुनियाभर में लगभग 100 करोड़ लोग विटामिन डी की कमी से ग्रसित हैं।
• 50-90 प्रतिषत भारतीयों में विटामिन डी की कमी व्यापक है व उनके आहार में कैल्शियम की मात्रा भी कम होती है।
• धूप के संपर्क में आना विटामिन डी के निर्माण के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
• हल्के रंग की त्वचा वाले व्यक्तियों की तुलना में गहरे रंग की त्वचा वाले व्यक्तियों में धूप के संपर्क में आने पर विटामिन डी का निर्माण कम होता है।
• सनस्क्रीन का उपयोग करने से त्वचा के कैंसर से बचाव मे मदद मिलती है पर इससे विटामिन डी की कमी का खतरा भी बढ़ जाता है क्योंकि सन प्रोटेक्शन फेक्टर 8 वाली सनस्क्रीन लगाने से त्वचा द्वारा विटामिन डी का निर्माण 95 प्रतिषत तक कम हो जाता है।
• जो व्यक्ति धूप के संपर्क में कम आते हैं उनमें विटामिन डी की कमी ज्यादा हो सकती है।
• बुजुर्गों में विटामिन डी की कमी से हड्डियों में मिनरल्स के घनत्व मे कमी व फ्रैक्चर होने की संभावना ज्यादा होती है।
• अध्ययनों से पता चला है कि विटामिन डी के सप्लीमेंटेंशन के साथ कैल्शियम के सप्लीमेंटेशन से हड्डियों में मिनरल्स की घनत्वता व बुजुर्गां में फ्रैक्चर होने की कम संभावना पर सकारात्मक प्रभाव पड़
सकता है।
सकता है।
• विटामिन डी के ज्यादा स्तर से घुटनों के कार्टिलेज की हानि कम हो सकती है जिसका मतलब है कि विटामिन डी का सप्लीमेंटेशन घुटनों
के ऑस्टियोआर्थराइ टिस को बढ़ने से रोक सकता है।
के ऑस्टियोआर्थराइ टिस को बढ़ने से रोक सकता है।