सुनामी : लक्षण एवं विविध पक्ष

                                         "सुनामी"
•सुनामी को एक प्राकृतिक आपदा के रूप में माना जाता है। भूकंप और ज्वालामुखी से महासागरीय धरातल में अचानक हलचल पैदा होती है और महासागरीय जल का अचानक विस्थापन होता है। परिणामस्वरूप ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगे पैदा होती हैं जिन्हें सुनामी (बंदरगाह लहरें) या भूकंपीय समुद्री लहरें कहा जाता है।
                                       "लक्षण"
•सामान्यतया प्रारंभ में सुनामी की स्थिति में सिर्फ एक ऊर्ध्वाधर तरंग ही पैदा होती है, परंतु कालांतर में जल तरंगों की एकशृंखला बन जाती है क्योंकि प्रारंभिक तरंग भी ऊँची शिखर और नीची गर्त के बीच अपना जल स्तर बनाये रखने की कोशिश करती है।
                                      "विविध पक्ष"
•जल तरंग की गति महासागर में जल की गहराई पर निर्भर करती है। इसकी गति उथले समुद्र में ज्यादा और गहरे समुद्र में कम होती है। परिणामस्वरूप महासगरों के अंदरूनी भाग इससे कम प्रभावित होते हैं। सुनामी की तरंगें तटीय क्षेत्रों में ज्यादा प्रभाव उत्पन्न करती हैं और काफी विनाशक रूप धारण करती हैं इसलिए समुद्र में जलपोत पर, सुनामी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। समुद्र के आंतरिक गहरे भाग में तो सुनामी महसूस भी नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गहरे समुद्र में सूनामी की लहरों की लंबाई अधिक होती है और ऊँचाई कम होती है। इसलिए, समुद्र के इस भाग में सुनामी जलपोत को एक या दो मीटर तक ही ऊपर उठा सकती है और वह भी कई मिनट में।
•इसके विपरीत, जब सुनामी उथले समुद्र में प्रवेश करती हैं, इसकी तरंग की लंबाई कम होती चली जाती है,समय वही रहता है और तरंग की ऊँचाई बढ़ती जाती है। कई बार तो इसकी ऊँचाई 15 मीटर या इससे भी अधिक हो सकती है। जिससे तटीय क्षेत्र में भीषण विध्वंस होता है। तट पर पहुँचने पर सुनामी तरंगें बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा-निर्मुक्त करती हैं और समुद्र का जल तेजी से तटीय क्षेत्रों में घुस जाता है।
•सुनामी आम तौर पर प्रशांत महासागरीय तट पर जिसमें अलास्का, जापान; फिलीपाइन, दक्षिण-पूर्व एशिया के दूसरे द्वीप, इंडोनेशिया, मलेशिया तथा हिन्द महासागर में म्यामांर, श्रीलंका और भारत के तटीय भागों में आती है।

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